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भाजपा-कांग्रेस की यात्राओं के बीच एमपी में बढ़ी सियासी हलचलें, आदिवासी वोट बैंक साधने दोनों दल कर रहे जोरआजमाइश

भाजपा-कांग्रेस की यात्राओं के बीच एमपी में बढ़ी सियासी हलचलें, आदिवासी वोट बैंक साधने दोनों दल कर रहे जोरआजमाइश

भोपाल, न्यूज़ वर्ल्ड डेस्क। कहते हैं प्यार और रजानीति में सबकुछ जाइज होता है, विधानसभा चुनाव के मद्देनजर भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों की राजनीति देख यही कहा जा सकता है। फतह का परचम लहराने कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही, खासकर के आदिवासी क्षेत्रों में दोनों पार्टियों की एक्टिविटि को लेकर तो यही कहा जा सकता है। राजनीति में सबकुछ जाइज है और इसके लिए यात्राओं के सहारे अपनी-अपनी वेतरणी पार करने की जद्दोजहद शुरू हो गई है।


मध्य प्रदेश में आदिवासी वोट बैंक को निर्णायक भूमिका के तौर पर देखा जाता है। 2018 के विधानसभा चुनावों ने इस बात को सिद्ध भी किया है। ऐसे में आदिवासी नेता बिरसा मुंडा हो या टंट्या मामा, इनके सहारे सियासी दांव पेंच का खेल भी जारी है। वैसे तो राहुल गांधी की भारत जोड़ों यात्रा कन्यकुमारी से कश्मीर तक का मिशन लेकर चल रही है, लेकिन इस यात्रा का मध्य प्रदेश में जो रोड मैप तैयार किया गया है उसमें आदिवासी क्षेत्र को तरजीह दी गई है, तो फिर भाजपा भी कहां पीछे रहने वाली थी, प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान ने ऐलान कर दिया जनजाति गौरव यात्रा की।


यात्रा Vs यात्रा की राजनीति ने चुनावी गतिविधिय़ों के बीच अलग ही माहौल प्रदेश में बना दिया है। भारत जोडो यात्रा से कांग्रेस आदिवासियों में अपनी पेठ जमाने की कोशिश में हैं, तो बीजेपी दोहरी चाल चल रही है, एक जनजाति गौरव यात्रा और दूसरी पेसा एक्ट अभियान। दोनों कार्ड चल कर बीजेपी आदिवासियों को संदेश दे रही है की हम आपके साथ हैं, आप का हक मिलकर ही रहेगा, जिसे कोई नहीं छीन सकता है। यह तामाम कवायदें उन आदिवासियों को साधने के लिए की जा रही हैं, जिनका प्रभाव प्रदेश की लगभग 84 विधानसभा सीटों पर हैं। इनमें से 47 सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं। इनहीं क्षेत्रों के वोटों से तीन बार की भाजपा सरकार 2018 में सत्ता से बेदखल हो गई और कांग्रेस ने सत्ता संभाली। 


2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने आदिवासी बहुल 84 में से 34 सीट पर ही जीत हासिल की थी। भारतीय जनता पार्टी को 16 और कांग्रेस को 30 सीटे मिली थी। वहीं 2013 का गणित देखे तो आदिवासी बैंक में 31 पर कमल खिला था और महज 15 सीटों पर ही कांग्रेस को जीत मिल पाई थी। 2018 में आदिवासियों का साथ नहीं मिलने के कारण भाजपा सत्ता में वापसी नहीं कर पाई थी और कमलनाथ सत्ता में आ गए थे।


जनजातीय गोरव दिवस पर राष्ट्रपति दौपति मुर्मु (आदिवासी महिला) के हाथों पेसा एक्ट लागू कर भाजपा ने ट्रंप कार्ड तो चल दिया, लेकिन कांग्रेस ने भी राहुल की भारत जोड़ों यात्रा आदिवासी नाम का चैपटर जोड़ बीजेपी को सोचने पर मजबूर कर दिया है। वहीं देखा जाए तो भाजपा ने कांग्रेस की यात्रा की काट ढूंढ ली है। आदिवासी जननायक टंट्या मामा की जन्मस्थली से जनजाति गौरव यात्रा का आगाज कर दिया है, इसके पीछे की वजह ये मानी जा रही है, कि कांग्रेस की यात्रा अधिकतर आदिवासी इलाकों से होकर निकलने जा रही है। दोनों पार्टियों का फोकस आदिवासी वोटर पर रहेगा। आदिवासी वोटरों को खोने के डर से दोनों ही पार्टियां यात्रा निकाल रही हैं। एक खास बात यह भी है की, बीजेपी ने अपने सभी विधायकों को पेसा एक्ट की जानकारी आदिवासियों तक पहुंचाने की जिम्मेदारी सौंपी है। 


ऐसे में अब देखना होगा मध्यप्रदेश की राजनीति का केंद्र बिंदू बने आदिवासियों का क्या रुख सामने आता है। 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर दोनों ही दल अपने अपने स्तर पर खास स्क्रिप्ट तैयार करने में जुटे हैं।

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