भोपाल। रविवार को भोपाल आए बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने अबकी बार 200 पार का नारा दिया है। कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए नड्डा ने दावा किया कि इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव में बीजेपी 230 में से 200 सीटें जीतेगी। उन्होंने यह भी कहा कि चुनाव में बीजेपी को 51 प्रतिशत से ज्यादा वोट मिलेंगे। पिछले चुनाव के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया के दलबदल के चलते सत्ता में आई बीजेपी एंटी इनकम्बेंसी से जूझ रही है। इसके बावजूद नड्डा का यह बयान इस बात का संकेत है कि बीजेपी को सत्ता में वापसी का पूरा भरोसा है। इस विश्वास की तीन बड़ी वजहें भी हैं।
सभी वर्गों को साधने की रणनीति
चौथी बार मुख्यमंत्री बनने के बाद से शिवराज सिंह चौहान लगातार सभी वर्गों को साधने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। एससी, एसटी और ओबीसी समुदाय को बीजेपी के पाले में करने के लिए वो हरसंभव प्रयास कर रहे हैं। पिछले चुनाव में कांग्रेस के मुकाबले बीजेपी के पिछड़ने का सबसे बड़ा कारण आदिवासी वोट बैंक का छिटकना था। बीते तीन साल में शिवराज ने आदिवासियों के हित के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं। पेसा एक्ट के जरिए जहां उन्हें जल, जंगल और जमीन पर मालिकाना हक दिया गया है, वहीं आदिवासी प्रतीकों और महापुरुषों का सम्मान कर यह भरोसा दिलाया गया है कि बीजेपी ही उनकी शुभचिंतक है।
महिला वोट बैंक पर नजर
मध्य प्रदेश में महिला वोटर्स की संख्या 2.60 करोड़ से ज्यादा है। एक जनवरी को जारी रिवाइज्ड वोटर लिस्ट में भी पुरुषों के मुकाबले महिलाएं ज्यादा वोटर बनी हैं। कम से कम पांच जिले और विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां महिला वोटर्स की तादाद पुरुषों से ज्यादा है। बीजेपी ही नहीं, कांग्रेस भी मानती है कि आने वाले चुनावों में सबसे बड़ा वोट बैंक महिलाएं ही होंगी। इसी को ध्यान में रखकर सीएम शिवराज सिंह चौहान ने लाडली लक्ष्मी के बाद लाडली बहना योजना की शुरुआत की है। इसके तहत सभी महिलाओं को हर महीने एक हजार रुपये देने का प्रावधान किया गया है। यदि महिला वोट बैंक बीजेपी के पाले में जाता है तो पार्टी की जीत का रास्ता बेहद आसान हो सकता है।
कांग्रेस की गुटबाजी
बीजेपी के विश्वास का सबसे बड़ा कारण कांग्रेस की गुटबाजी है। सिंधिया की कांग्रेस से विदाई के बाद कमलनाथ और दिग्विजय सिंह का प्रदेश कांग्रेस में एकछत्र राज जरूर है, लेकिन अंदरखाने उनके खिलाफ कई गुट सक्रिय हैं। अरुण यादव, जीतू पटवारी और अजय सिंह राहुल जैसे कई नेता गाहे-बगाहे प्रदेश नेतृत्व के खिलाफ अपनी आवाज उठाते रहते हैं। कांग्रेस की गुटबाजी पिछले दिनों सामने आ गई जब जीतू पटवारी को विधानसभा से निलंबित कर दिया गया। इसके खिलाफ पूरे प्रदेश में विरोध-प्रदर्शन हुए, लेकिन कमलनाथ ने इससे दूरी बनाए रखी। इतना ही नहीं, राहुल गांधी को संसद से अयोग्य घोषित किए जाने के बाद कांग्रेस पार्टी ने पूरे प्रदेश में सत्याग्रह आयोजित किया, लेकिन कमलनाथ इससे भी दूर रहे।
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