भोपाल। प्रदेश में शुगर और बीपी के मरीजों की संख्या हर महीने बढ़ रही है, लेकिन गांवों के अस्पतालों में दवाएं खत्म हो चुकी हैं। ICMR और WHO की स्टडी में बड़ा खुलासा हुआ है। रिपोर्ट में बताया गया है कि प्रदेश के सीहोर, विदिशा और अनूपपुर जिलों के उप-स्वास्थ्य केंद्रों में पिछले 7 महीने से जरूरी दवाएं ही नहीं हैं।
10.67 लाख डायबिटीज और 18 लाख हाई बीपी के मरीज
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, अभी तक 10.67 लाख लोग डायबिटीज और 18 लाख हाई ब्लड प्रेशर के मरीज हैं। स्वास्थ्य विभाग ने दिसंबर 2025 तक 26 लाख बीपी और 15 लाख शुगर के मरीजों की पहचान करने का लक्ष्य रखा है।
लेकिन दवा की व्यवस्था ऐसी है कि सालभर की दवाएं 3-4 महीने में ही खत्म हो जाती हैं। मरीजों को बाकी 7-8 महीने खाली हाथ लौटना पड़ता है।
ICMR की रिपोर्ट: 105 उप-केंद्रों में 47 में एम्लोडिपिन नहीं, 37 में मेटफॉर्मिन खत्म
105 उप-स्वास्थ्य केंद्रों का सर्वे हुआ। 44.8% केंद्रों में बीपी की दवा एम्लोडिपिन का डिब्बा खाली मिला। 35.2% में शुगर की दवा मेटफॉर्मिन तक नहीं थी। स्वास्थ्यकर्मियों ने बताया, दवाएं साल के शुरुआती महीनों में ही खत्म हो जाती हैं। बाकी समय केवल मरीजों को आश्वासन मिलता है।
415 अस्पतालों पर दो साल चला सर्वे, लेकिन हालात नहीं बदले
2021 और 2023 में ICMR, WHO और BHU ने 19 जिलों के 415 अस्पतालों में स्टडी की। इनमे 75.7% सरकारी और 24% निजी अस्पताल शामिल थे। केवल 70% स्वास्थ्य केंद्रों में ही एनसीडी (गैर-संचारी रोग) प्रबंधन की न्यूनतम व्यवस्था मिली।
डॉक्टर और सर्जन की कमी, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में कोई विशेषज्ञ नहीं
➡️ ग्रामीण क्षेत्रों के स्वास्थ्य केंद्रों में स्टाफ की भारी कमी।
➡️ रिपोर्ट में कहा गया कि 82.2% चिकित्सकों और 83.2% सर्जनों की कमी है।
➡️ सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में विशेषज्ञ डॉक्टरों की पोस्ट खाली पड़ी है।
रिपोर्ट में क्या कहा गया?
???? “गैर-संचारी रोगों की दवाएं सालभर के बजट में दी जाती हैं, लेकिन 3-4 महीने में ही खत्म हो जाती हैं।
उसके बाद मरीजों को इलाज के लिए या तो प्राइवेट क्लिनिक का सहारा लेना पड़ता है या भगवान भरोसे जीना पड़ता है।”
— रिपोर्ट में ICMR, WHO और BHU के संयुक्त अध्ययन की टिप्पणी
अब आगे क्या?
स्वास्थ्य विभाग का कहना है कि जल्द दवा आपूर्ति की प्रक्रिया सुधारी जाएगी।
लेकिन ग्रामीण मरीजों के लिए हर दिन बिना दवा गुजारना, उनके लिए एक नई बीमारी से कम नहीं।
"शुगर और बीपी के मरीजों की बढ़ती संख्या के बावजूद, गांवों में दवा और डॉक्टर की कमी से जूझना अब आम बात हो गई है। सरकार को अब सिस्टम पर फोकस करना होगा, वरना आंकड़े सिर्फ फाइलों में ही रह जाएंगे।"
(इस खबर में शामिल अध्ययन 'इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च' में प्रकाशित रिपोर्ट पर आधारित है।)
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