भोपाल। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस अब सिर्फ चैटबॉट्स या रोबोट्स तक सीमित नहीं, बल्कि धरती को बचाने की जंग में उतर आया है। भोपाल स्थित IISER (भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्थान) के वैज्ञानिकों ने एक ऐसा AI टूल 'जेनोबग' (XenoBug) विकसित किया है, जो पर्यावरण में मौजूद जहरीले रसायनों को खत्म करने और अज्ञात बैक्टीरिया की पहचान में सक्षम है।
क्या है ‘जेनोबग’?
जेनोबग एक वेब-आधारित एआई प्लेटफॉर्म है, जो मशीन लर्निंग, न्यूरल नेटवर्क और कीमोइन्फॉर्मेटिक्स जैसी अत्याधुनिक तकनीकों का उपयोग करता है। यह प्लेटफॉर्म लाखों एंजाइम अनुक्रमों का विश्लेषण करता है और यह पहचानता है कि कौन-से बैक्टीरिया किस रसायन को बायोडिग्रेड कर सकते हैं।
कैसे किया गया तैयार?
वैज्ञानिकों ने जेनोबग को तैयार करने के लिए—
➡️ 3.3 मिलियन एंजाइम अनुक्रम
➡️ 16 मिलियन से अधिक एंजाइम डेटा
➡️ 6,814 सब्सट्रेट्स की जानकारी को मशीन लर्निंग मॉडल से प्रशिक्षित किया
➡️ इस प्रक्रिया में रैंडम फॉरेस्ट और आर्टिफिशियल न्यूरल नेटवर्क मॉडल्स का इस्तेमाल हुआ
पर्यावरण सुरक्षा में कैसे करेगा मदद?
➡️ जहरीले प्रदूषकों को बायोडिग्रेड करने वाले एंजाइमों और बैक्टीरिया की पहचान।
➡️ अज्ञात बैक्टीरिया और उनके पर्यावरणीय उपयोगों को उजागर करना।
➡️ प्लास्टिक, कीटनाशकों, औषधीय अपशिष्ट, भारी धातुओं जैसे खतरनाक रसायनों के जैवउपचार में तेजी।
➡️ कम खर्च, तेज समाधान और नीति निर्धारण में सहयोग।
विशेषज्ञ क्या कहते हैं?
प्रो. विनीत शर्मा, जो आइसर भोपाल के जैविक विज्ञान विभाग में कार्यरत हैं, बताते हैं, “जेनोबग पारंपरिक जैव उपचार तकनीकों की तुलना में अधिक तेज, सटीक और किफायती है। इसका उपयोग व्यापक स्तर पर किया जा सकता है।”
कहां हो सकता है उपयोग?
➡️ कीटनाशक-प्रभावित खेतों की मिट्टी की सफाई
➡️ फैक्ट्री अपशिष्ट से दूषित जल शुद्धिकरण
➡️ प्लास्टिक और दवा उद्योग के अवशेषों का जैवउपचार
➡️ शहरी प्रदूषण नियंत्रण योजनाएं
Comments
Add Comment