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रानी कमलापति की दर्दभरी दास्तां: जब भोपाल की रानी ने पानी में बहा दी दौलत और फिर खुद को भी…

रानी कमलापति की दर्दभरी दास्तां: जब भोपाल की रानी ने पानी में बहा दी दौलत और फिर खुद को भी…

भोपाल के दिल में, जहां तालाब की लहरें चुपचाप किनारों से टकराती हैं, वहां कमला पार्क के पास एक महल खड़ा है — अधूरा, चुप, और आज भी पानी में डूबा हुआ। यह कोई आम इमारत नहीं, यह इतिहास के पन्नों में सिसकती रानी कमलापति की आखिरी सांसों का गवाह है।


सौंदर्य और सत्ता की रानी

बहुत साल पहले, जब भोपाल सिर्फ जंगलों, झीलों और गोंड राजाओं की कहानियों से भरा था, वहां एक रानी हुआ करती थीं — कमलापति। गोंड साम्राज्य की अंतिम रानी। उनकी सुंदरता का कोई सानी नहीं था और उनका साहस तो दुश्मनों के लिए दहशत बन चुका था।

 उनका विवाह हुआ था गिन्नौरगढ़ के राजा निजाम शाह से। राजमहल खुशहाल था, लेकिन किस्मत की आंखें हमेशा खुशियों पर जलती हैं।


साजिश की स्याही से लिखा गया विनाश

राजा निजाम शाह के सौतेले भतीजे आलम शाह की नजर सिर्फ गद्दी पर नहीं, बल्कि रानी पर भी थी। सत्ता की भूख और हवस ने उसे अंधा बना दिया। एक रात, जब महल की दीवारें चुप थीं और रानी अपने सुखद भविष्य के सपने देख रही थीं — आलम शाह ने राजा को ज़हर देकर मार डाला। रानी सब कुछ खो चुकी थीं। वो भोपाल आ गईं और बड़ा तालाब के किनारे इस जलमहल में रहने लगीं।


बदले की आग में सुलगती रानी

रानी जानती थीं कि अगर न्याय नहीं हुआ, तो इतिहास उन्हें कायर कहेगा।  उन्होंने इस्लामपुर के नवाब दोस्त मोहम्मद खान से मदद मांगी। सौदा हुआ — एक लाख अशर्फियाँ और बदले में आलम शाह का अंत। नवाब ने वादा निभाया, आलम मारा गया। पर यहीं से दोस्ती की आड़ में सत्ता की भूख शुरू हुई।


जब दोस्त ही बना दुश्मन

रानी सिर्फ पचास हज़ार अशर्फियाँ दे सकीं। नवाब ने बदले में भोपाल का हिस्सा माँगा, और फिर एक दिन उसने रानी को अपने हरम में शामिल करने का प्रस्ताव दे डाला।

 रानी के लिए यह प्रस्ताव इज्जत पर आखिरी वार था।


नवल शाह की लाल घाटी

रानी का बेटा नवल शाह, सिर्फ चौदह साल का था — लेकिन साहस उसकी नसों में दौड़ता था। उसने अपनी मां की इज्जत के लिए तलवार उठाई और लाल घाटी में युद्ध करने गया। उस युद्ध में वो वीरगति को प्राप्त हुआ। उसकी मौत के बाद घाटी की मिट्टी लाल हो गई — और तभी से वो "लाल घाटी" कहलाने लगी।


आखिरी इज्जत… आखिरी सांस

रानी ने युद्ध की हार की खबर मनुआभान की पहाड़ी से उठते धुएं के संकेत से पाई। वो समझ गईं — अब कोई युद्ध नहीं बचा, सिर्फ सम्मान की मौत बाकी है। उन्होंने महल का वह गुप्त रास्ता खुलवाया जो बड़ा तालाब को छोटे तालाब से जोड़ता था।  पानी धीरे-धीरे महल में भरने लगा।

 रानी ने पहले अपने गहने, खजाना और इतिहास पानी में बहाया — फिर खुद को।

ये सिर्फ आत्महत्या नहीं थी — इज्जत की जल समाधि थी।


आज भी महल में गूंजती है रानी की चुप्पी

जब आप कमला पार्क के पुल पर खड़े होते हैं और पानी में डूबे उस महल को देखते हैं — तो लगता है जैसे कोई कहानी अब भी गूंज रही है, जैसे कोई आत्मा अब भी राह तक रही है।


भोपाल की मिट्टी में अमर रानी

आज भोपाल में उनकी याद में हबीबगंज स्टेशन का नाम ‘रानी कमलापति स्टेशन’ रखा गया है।  छोटे तालाब के किनारे उनकी प्रतिमा है। लेकिन उनकी असली पहचान उस जलमहल की चुप दीवारों में दफन है, जो अब भी हर रात उनकी आखिरी सांसों को दोहराता है।


यह कहानी नहीं, इतिहास का वो पन्ना है, जिसे वक्त ने छुपाया और पानी ने संभाल कर रखा है।

Sanju Suryawanshi

Sanju Suryawanshi

sanju.surywanshi1@gmail.com

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