भोपाल। लोकसभा चुनाव के लिए पहले और दूसरे फेज का मतदान पूरा हो गया है। इस बीच कम वोटिंग टर्न आउट या कम वोटिंग ट्रेंड को लेकर नई बहस और सियासी गुणा-गणित का दौर शुरू हो गया है। मध्य प्रदेश में दो दशकों में पहली बार लोकसभा चुनाव में मतदान प्रतिशत गिरा है, लेकिन न तो भाजपा और न ही कांग्रेस चिंतित दिख रही है। कम मतदान को लेकर भाजपा दावा कर रही है की, परिणाम आने के बाद उसके और विपक्षी पार्टी के बीच 20 प्रतिशत के मत का अंतर होगा। वहीं कांग्रेस वोटिंग में गिरावट को भगवा लहर कम होने का संकेत मान रही है।
मोदी जी का जादू कम हो रहा
मध्यप्रदेश कांग्रेस मीडिया विभाग के अध्यक्ष मुकेश नायक का कहना है की, यह केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ एंटी इंकम्बेंसी है। मतदान प्रतिशत के कम होने से साफ है कि मोदी जी का जादू कम हो रहा है। इससे उस दावे की भी पोल खुल रही है, जिसमें मोदी जी को ग्लोबल लीडर और 400 पार की बात कही जा रही थी। पिछली बार भाजपा जिन शहरी क्षेत्रों से जीती, उन्हीं जगह मतदान में कमी आ रही है। इस चुनाव में महंगाई, बेरोजगारी से परेशान मतदाता अपने मत का प्रयोग कर रहा और जिसे अब मोदी से कोई उम्मीद नहीं है वो वोट डालने नहीं जा रहा है।
विपक्षी पार्टियों का मतदान कम हो रहा
मध्यप्रदेश भाजपा के प्रदेश मीडिया प्रभारी आशीष अग्रवाल का कहना है की, प्रदेश में विपक्षी पार्टियों का मतदान कम हो रहा है। उनके कार्यकर्ताओं में हताशा और निराशा है। उनका ना कोई नेता है ना कोई नीति है। ना कार्यों का लेखाजोखा है। इस चुनाव में मत प्रतिशत कम होने के बाद जो परिणाम आएंगे, वो नजीर बनेंगे। भाजपा और विपक्षी पार्टी के बीच 20 प्रतिशत के मत का अंतर होगा।
दरअसल मप्र में दूसरे चरण में 6 सीटों पर 58.35 प्रतिशत मतदान हुआ है। बीते लोकसभा चुनाव में इन सीटों पर हुए मतदान को देखें तो करीब नौ प्रतिशत वोटिंग कम हुई है। 2019 में इन छह सीटों पर औसतन 67.77 प्रतिशत मतदान हुआ था।
दूसरे चरण की छह सीटों पर मतदान
पहले चरण से भी कम हुआ मतदान
लोकसभा चुनाव 2024 के दूसरे चरण में शुक्रवार को 58.35 फीसदी मतदान हुआ, जबकि 2019 में 67.64 प्रतिशत मतदान हुआ था। इस तरह इसमें 9.29 फीसदी की गिरावट आई। पहले चरण में 67.75 फीसदी वोटिंग हुई थी, जो कि 2019 के 75.24 फीसदी के मुकाबले 7.47 कम थी।
वोटर तीन तरह के होते हैं
भारत का मतदाता बहुत ध्यान से वोट करता है। वोटर तीन तरह के होते हैं। पहला- जिन्होंने बीजेपी और पीएम मोदी को वोट देने का फैसला पहले ही कर लिया है। दूसरा- विपक्ष वाला मतदाता भी अपना माइंड सेट बनाकर रखता है। तीसरा-स्विंग वोटर्स को लेकर ही असली लड़ाई होती है। जब भी कम वोटिंग ट्रेंड होता है, तब भी कमिटेड वोटर्स तो वोटिंग के लिए जाते हैं, लेकिन स्विंग वोटर्स चीजें तय नहीं कर पाते। इसके बाद भी ऐसा कोई सेट पैटर्न नहीं है, जिसके आधार पर ये कहा जा सके कि अगर वोटिंग कम हुई, तो रूलिंग पार्टी को नुकसान है और अपोजिशन पार्टी को फायदा होने वाला है।
पिछले 17 लोकसभा चुनाव में यह हुआ
वोटरों के लिहाज से देखें तो कम वोटिंग टर्न आउट अच्छी खबर नहीं है। इससे समझ में आता है कि लोकसभा चुनाव को लेकर वोटरों में कुछ उदासीनता है। 2019 के आम चुनावों से तुलना करें, तो उदासीनता साफ दिखाई पड़ती है। कम वोटिंग से किसे इलेक्टोरल गेन मिलेगा और किसका लॉस होगा.... वास्तव में इसका कोई हिसाब नहीं होता है। कई बार वोटिंग टर्न आउट गिरता है, फिर भी सरकारें जीत कर केंद्र में आती हैं। कई बार वोटिंग टर्न आउट कम होने से सरकारें हारती भी हैं। बीते 17 लोकसभा चुनावों में वोटिंग ट्रेंड देखें, तो 5 बार मतदान घटा है और 4 बार सरकार बदल गई। 7 बार मतदान बढ़ा, तो 4 बार सरकार बदली।
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