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सर्दी शुरू होते ही बच्चों में बढ़ा निमोनिया का खतरा, ऐसे रखें नौनिहालों का ध्यान

सर्दी शुरू होते ही बच्चों में बढ़ा निमोनिया का खतरा, ऐसे रखें नौनिहालों का ध्यान

ग्वालियर। देश में हर साल कई बच्चे निमोनिया के शिकार होते हैं। कई बच्चों की मौत भी हो जाती है। हालांकि, वैक्सीन आने के बाद से मौत के आंकड़ों में गिरावट देखने को मिली है लेकिन बीमारी अब भी गंभीर है। सर्दी के दिनों में बच्चों में निमोनिया का खतरा ज्यादा रहता है। इसलिए ठंड में बच्चों का ख्याल अधिक रखें। जेएएच की ओपीडी में भी इन दिनों निमोनिया से ग्रस्त बच्चे उपचार लेने के लिए खासी संख्या में पहुंच रहे हैं।


ग्वालियर जीआर मेडिकल कॉलेज के बाल एवं शिशु रोग विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. अजय गौड़ ने बताया कि निमोनिया फेफड़ों में हो जाने वाला एक ऐसा संक्रमण है जो बैक्टीरिया, फंगस, और वायरस की वजह से होता है। इसके कारण, इंसान के फेफड़ों में सूजन आ जाती है और उनमें लिक्विड भर जाता है। निमोनिया किसी भी उम्र के इंसान को अपना शिकार बना सकता है। हालांकि, पांच साल तक के बच्चों को इससे बचाने की खास कोशिश करनी चाहिए। उन्होंने बताया कि सही समय के मुताबिक बच्चों का टीकाकरण करवाने से, निमोनिया के होने वाले खतरों से बहुत हद तक बचा जा सकता है। निमोनिया के टीके का नाम न्यूमोकोकल कॉन्जुगेट है। इस टीके को डेढ़ महीने, ढाई महीने, साढ़े तीन महीने और 15 महीने की उम्र में बच्चों को लगाया जाता है।


इन बच्चों को अधिक रहता है निमोनिया का खतरा

दो साल से कम उम्र उम्र के बच्चों में निमोनिया होने का जोखिम ज्यादा होता है, क्योंकि उस समय तक उनकी रोग-प्रतिरोधक क्षमती पूरी तरह विकसित नहीं हुई होती।

जो बच्चे ज्यादा धुएं और प्रदूषण के संपर्क में आते हैं, उनके फेफड़ों में परेशानी हो सकती है, जिससे निमोनिया का खतरा बढ़ जाता है। यह समस्या एक साल से कम उम्र के बच्चों में ज्यादा होती है।

कुछ शिशुओं को जन्म के दौरान ही निमोनिया हो जाता है। डिलीवरी के दौरान ग्रुप बी स्ट्रेप्टोकोकस के संपर्क में आने के कारण बच्चा निमोनिया का शिकार हो सकता है।

एचआईवी-एड्स या कैंसर के इलाज के कारण जिन बच्चों की प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर होती है, उनमें संक्रमण का खतरा अधिक होता है।

सिस्टिक फाइब्रोसिस और अस्थमा जैसी समस्याएं फेफड़ों पर असर डालती हैं, जिससे संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है।

जिनके फेफड़ों में पहले से ही संक्रमण हों, उन्हें निमोनिया का खतरा बढ़ जाता है।

कभी-कभी छोटे बच्चे दूध या कुछ खाद्य पदार्थों को (अविकसित वायुमार्ग और गलत स्तनपान की स्थिति के कारण) एस्पिरेट कर सकते हैं। इसमें दूध वायुमार्ग या फेफड़ों में चला जाता है, जिसके परिणामस्वरूप फेफड़ों में संक्रमण या निमोनिया हो सकता है।


इन बातों का रखें ध्यान 

बच्चों की गुनगुने तेल से मालिश करें।

खांसने और छींकने के दौरान मुंह बंद रखें।

टिशू इस्तेमाल करके तुरंत डिस्पोज कर दें।

नवजात बच्चों को पूरे कपड़े पहनाएं।

भरपूर आराम करें और हेल्दी फूड लें।

इम्यून सिस्टम मजबूत करें।

हेल्दी लाइफस्टाइल अपनाए।


इनका कहना है

सर्दी के मौसम में निमोनिया का खतरा अधिक रहता है। ऐसे में बच्चों को सर्दी से बचा कर रखें। उन्हें गर्म कपड़े पहनाएं और सुबह-शाम घर से बाहर न निकलने दें। पांच साल तक बच्चे में निमोनिया का खतरा बना रहता है। ऐसे में पांच साल की आयु तक उनका विशेष ध्यान रखना जरूरी है। बच्चे को खांसी, जुकाम, बुखार होने पर नजदीकी चिकित्सक से जांच अवश्य करवाएं।

-डॉ.अजय गौड़, विभागाध्यक्ष बाल एवं शिशु रोग विभाग

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